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*************श्रद्धासुमन*************

एक सोच मेरी भी
एक सोच मेरी भी
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*************श्रद्धासुमन*************

याद करेंगे सुबहो–शाम
अमर श्रीभगवान तुम्हे प्रणाम
जय माता दी जय श्री राम

श्री श्रीभगवान जायसवाल
श्री श्रीभगवान जायसवाल

जन्म– १५ जुलाई १९५० निर्वाण- १५ नवम्बर २००८

न जायते म्रियते वा कदाचि-. न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो. न हन्यते हन्यमाने शरीरे

श्रीमदभगवतगीता के २०वे श्लोक में जिस तरह बताया गया है कि “आत्मा किसी काल में न जन्मता है ,और न मरता है और न ही पुनः उत्पन्न होने वाला है,शरीर के नष्ट होने के बाद भी वह मरता नहीं, वह अमर रहता है ” ठीक उसी प्रकार ‘केंद्रीय दुर्गा पूजा एवं रामलीला समन्वय समिति साकेत’ का यह मूर्धन्य सेनापति आज भी हम सभी के बीच अजर और अमर है। दिनांक १५ नवम्बर २००८ दिन शनिवार को अपराहन २.३० बजे काल के क्रूर हाथो ने हम सबके प्रिय और केंद्रीय दुर्गा पूजा एवं रामलीला समन्वय समिति साकेत  के जनक श्रधेयेश्री श्रीभगवान जायसवाल को हमसे छीन लिया और इसी के साथ अंत हो गया एक ऐसे युग का,जिसने जनपद फ़ैजाबाद कि जमीं पर एकता और भाईचारे की गंगा-यमुना रूपी संस्कृति में दुर्गापूजा और दशहरा उत्सव को महोत्सव के रूप में रच करके उसे संपूर्ण भारतवर्ष में एक अलग पहचान दी,अंत हो गया एक ऐसे सेनापति का जिसने अकेले अपने दम पर फ़ैजाबाद में रामलीला एवं दुर्गापूजा समितियों को एक सूत्र में पिरो कर कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फ़ौज खड़ी कर उन्हें सम्मान के लिए झूझना तथा तत्पर रहना सिखाया और आज के पूंजीवादी युग में संगठन की शक्ति कार्यकर्ता है,यह सिध्द करके दिखाया। आज केंद्रीय समिति का हर व्यक्ति,हर कार्यकर्ता अपने उस जुझारू सेनापति के अपने बीच से अचानक चले जाने से हतप्रभ, दुखी: तथा निराश जरूर है किन्तु हताश या मायूस नहीं है। उन्हें यह पूर्ण विश्वास है कि उनके सेनापति कि प्रेरणा हर समय उनका उचित दिशा निर्देशन करता रहेगा। जहाँ एक तरफ उत्सव को महोत्सव का रूप देने का श्री श्रीभगवान जी का अथक प्रयास विद्यमान है,वहीँ दूसरी ओर श्रीभगवान जी का जुझारू व कर्मठता उनके पूरे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ते है। १० जुलाई १९५० को एक साधारण से बिस्कुट व्यवसायी श्री महादेव प्रसाद जायसवाल कि धर्मपत्नी श्रीमती दसरथ देवी ने जब एक बालक को जन्म दिया तब शायद ही किसी को इस बात का आभास रहा होगा कि यह बालक आगे चलकर फ़ैजाबाद नगर के इतिहास को एक नया मोड़ देते हुए प्रभु श्रीराम की इस पावन नगरी में माँ दुर्गा की पूजा को विश्वविख्यात दुर्गा पूजा की श्रेणी में ला खड़ा करेगा।

रल सादगी शांत चित्त,सरस सहज व्यवहार।

दुर्गा पूजा के जनक, राष्ट्र प्रेम का ज्वार। ।

आजीवन करते रहे जन-जन का सम्मान।

महादेव-दशरथ सुवन, समदर्शी भगवान। ।

चूना बेचा करते थे और किसी तरह एक वक्त की रोटी का इंतजाम करते थे। बाद में अपनी माँ और दोनों बहनों की मदद से इन्होने एक छोटी सी बिस्कुट बेकरी बनाई जहाँ पूरा परिवार दिन रात मेहनत करके घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने में लग गया। रात भर माँ के साथ भाई–बहन सामान बनाते और दिन में श्रीभगवान जी ठेला लेकर सामान बेचने चले जाते और माँ तथा बहन बेकरी पर स्थित दुकान सम्हालती। बाद में कटिहार (बिहार) निवासी अपने मौसा और मौसी जी की मदद से इन्होने सेवई का छोटा सा कारखाना लगाया उन लोगो के सहयोग से परिवार का धीरे–धीरे विकाश होने लगा। इन्ही सबके बीच युवा श्रीभगवान के ह्रदय में समाज की विभिन्न असमानताओ ने दबी कुचली जनता की आवाज मुखर करने की जो ज्वाला प्रज्वलित हुई,वही ज्वाला आगे चलकर फ़ैजाबाद की प्रमुख संस्था ‘नवयुवक क्रांतिकारी संघ’की स्थापना का प्रमुख कारण बनी। उन्होंने काफी समय तक अपने सहयोगियो के साथ जनता की आवाज को बुलंद किया। किशोरावस्था से ही ये रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और जनसंघ के कार्य में भी बढ कर भाग लेने लगे। इसी बीच पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए उन्होंने अपनी बड़ी बहन का विवाह वाराणसी के एक सभ्रांत परिवार में किया तथा अपने पिता द्वारा छोड़ कर गए जिम्मेदारियो में से एक बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह किया। जब सन १९७५ में देश में आपातकाल लागू हुआ तब तक श्रीभगवान जी भी कोंग्रेसी सरकार की आँख की किरकरी बन चुके थे और उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल में ठूंस दिया गया। इनके साथ बहुत सारे लोग कांग्रेसी सरकार की यातना एक शिकार हुए। १९७७ में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब तक प्रमुख जनपदीय नेताओ में इनकी गड़ना होने लगी। सन १९७१ में फतेहगंज नवयुवक क्रांतिकारी संघ एवं लाजपत नगर में दुर्गापूजा का प्रादुर्भाव हुआ और वर्ष १९७७ आते-आते पूरे नगर में ९ स्थानों पर दुर्गापूजा आरम्भ हो गया। वर्ष १९७८ में सभी दुर्गापूजा समितियो का एकत्रीकरण श्रीभगवान जी द्वारा श्रीनाथ बंसल और अम्बरीश सर्राफ के सहयोग से कराते हुए “केंद्रीय दुर्गापूजा एवं रामलीला समन्वय समिति” की विधिवत स्थापना करके वर्ष १९७८ में राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान से सभी दुर्गा प्रतिमाओं का संयुक्त शोभायात्रा निकलकर माता की प्रतिमाओं का विसर्जन गुप्तारघाट पर किया। वर्ष १९७९ में गोरखपुर के संतुप्रसाद जायसवाल की की पुत्री मंजू जायसवाल के साथ इनका विवाह हुआ। जब १९८० में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ, तो अयोध्या विधान सभा क्षेत्र से कमल चुनाव निशान से चुनाव लड़ने वाले यह पहले व्यक्ति हुए और कांग्रेस कि इंदिरा लहर के कारण बहुत ही मामूली अंतर से चुनाव हार गए। इसी बीच परिवार की स्थिति पुनः बिखरने लगी और इसी दौरान इन्होने अपनी छोटी बहन की भी शादी सुल्तानपुर जिले के श्री विनोद जायसवाल के साथ समपन्न कराया। सन १९८२ आते-आते केंद्रीय दुर्गा पूजा समिति के व्यवस्थित तथा अनुशासित तौर तरीको से प्रभावित जिला प्रशाशन ने भी खुले ह्रदय से उत्सव को सुन्दर और व्यवस्थित में अपना हर संभव सहयोग करने लगा। इसी सहयोग को दृसटीगत रखते हुए केंद्रीय समिति ने श्रीभगवान के दिशा निर्देश में वर्ष १९८२ के उत्सव के बाद जिला प्रशासन, नगर पालिका एवं पुलिस प्रशासन था अन्य सहयोगी बंधुओ को धन्यवाद् देने लिए “धन्यवाद् समारोह” आयोजित करने लगी। १९८४ में पुनः ये भारतीय जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े और दुर्भाग्य से पुनः कांग्रेस से पराजित हो गए। ये दुर्भाग्य रहा की वर्ष १९८८ में कुछ असामाजिक तत्वों के कारण पूरा नगर दंगे की आग में झुलस गया। दंगे की रात सैकड़ो परिवारों को उनके घरो तक सुरक्षित पहुँचाने के साथ ही हैदरगंज की रामबारात को पुलिस के साथ सुरक्षित हैदरगंज पहुँचाने में श्रीभगवान जी ने विशेष प्रयास किया और दंगे के कारण ही इनको और अन्य दो लोगो को रास्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल भेज दिया गया। इनके साथ ही अन्य सैकड़ो लोग अन्य धाराओ में जेल भेजे गए। काफी समय के बाद ही इनकी जेल से रिहाई हो पायी। इसी दौरान इनके द्वारा पूर्व में लिए गए बैंक कर्ज की वसूली के लिए पंजाब नेशनल बैंक द्वारा इनके ऊपर मुकदमा दायर किया गया जिसमे सन १९८८ में इनके खिलाफ न्यायलय ने इनका घर नीलाम करने का आदेश पारित कर दिया। घर कि आर्थिक स्थिति चरमरा चुकी थी। इसी दौरान इन्होने परिवार का पेट पालने के लिए १९८६ से लेकर १९८८ तक अपनी सामजिक प्रतिष्ठा को किनारे कर ५ रुपया दैनिक मेहनताना की दर से एक लोकल अखबार में हाकरी किया। बाद में किसी तरह से इन्होने कुछ पैसो का इंतजाम करके अपना घर नीलाम होने से बचाया। राजनीती, समाजसेवा, चुनाव एवं जेल यात्राओं आदि में निरंतर बने रहने के कारण परिवार का आर्थिक ढाचां जो एक बार चरमराया तो फिर बद से बदतर होता चला गया और उससे उबरने के लिए इन्हें उसे सुधारने में में ही पूरी तरह जुट जाना पड़ा। इसी कारण १ जून सन २००० को इन्हें एक तगड़ा हार्ट अटैक आया और इलाज के लिए इन्हें फ़ैजाबाद के हार्ट केयर सेंटर में भर्ती कराया गया जहाँ से हालत ज्यादा ख़राब होने के कारण इन्हे पी जी आई लखनऊ रिफर कर दिया गया जहाँ से आपरेसन का पैसा न जमा कर पाने के कारण जबरदस्ती डिस्चार्ज कर दिया गया। बाद में कुछ खास सहयोगिओं जैसे श्री अशोक आर्य, श्री रामनाथ जायसवाल,श्री जगन्नाथ जायसवाल,श्री राम बाबू अग्रवाल और श्री रामलाल जायसवाल आदि के सहयोग से इन्होने अपने ह्रदय की शल्य चिकित्सा दिल्ली में करवाई और तब से इनके स्वास्थ्य में जो गिरावट आई फिर वो निरंतर बनी ही रही। इसके पश्चात ३० जून सन २००६ को इन्हें एक तगड़ा ब्रेन हम्रेज हुआ और फिर ये बिस्तर पर ही आ गए। लेकिन इन सब के बावजूद माँ भगवती के पूजा के लिए इनके अन्दर किसी भी प्रकार का आलस्य नहीं आया तथा ये पूर्व की भांती ही दुर्गापूजा और रामलीला महोत्सव नजदीक आते ही पता नहीं किस ताकत के बल पर उठ खड़े होते थे तथा पूरे जोश के साथ अपने नेतृत्व में पूजा को संपन्न करते रहे। इसके पश्चात ७ मई सन २००८ को इन्हें किडनी की समस्या के कारण फिर से पी जी आई लखनऊ में भर्ती करना पड़ा जहाँ डेढ़ माह तक इनका इलाज चला और किडनी फेल हो जाने के कारण ये डायलिसिस पर आ गए। डायलिसिस की प्रक्रिया के साथ काफी कमजोर अवस्था में ये २३ जून को फ़ैजाबाद वापस आये और पुनः दुर्गापूजा,रामलीला उत्सव की तैयारियो में जुट गए तथा प्रत्येक मीटिंग में स्वयं कार्यकर्ताओ का मार्गदर्शन तथा जिला प्रशाशन का ध्यानाकर्षण कराते हुए अपने स्वास्थ्य के प्रति पुनः बेफिक्र हो गए। इसी के परिणाम स्वरुप दिनांक २५ सितम्बर सन २००८ को केंद्रीय समिति के विसिस्टजनों की बैठक में इन्हें तीसरी बार ब्रेन हमेरेज हुआ और तुरंत ही इन्हें लखनऊ पी जी आई रिफर कर दिया और हालत कुछ सामान्य होते ही ये माँ दुर्गा की विसर्जन शोभायात्रा के कुछ दिन पूर्व ही ये वापस फ़ैजाबाद आ गए तथा दिनांक ९ अक्तूबर २००८ को उन्होंने शोभा यात्रा में भाग लिया और आगे-आगे चले तो संभवतः ही किसी को यह आभास भी न रहा होगा कि श्रीभगवान जी माँ दुर्गा कि शोभायात्रा में आज अंतिम बार शामिल है।

यूँ तो दुनिया के समंदर में कमी होती नहीं ।

लाख हो मोती मगर, उस आब का मोती नहीं ।।
अपने जीवन के अंतिम वर्षो में काफी बीमार रहने के बाद भी माँ दुर्गा की पूजा एवं प्रभु श्रीराम की रामलीला के प्रति श्रीभगवान जी का लगाव हमेशा एक सा बना रहा। श्रीभगवान जी अपने पीछे अपना भरपूर परिवार जिसमे वयोवृद्ध माँ,पत्नी तथा पुत्र गौरव, गगन और शिवम् तथा तीन छोटी पुत्रिया शुभम,शिवानी और सलोनी सहित समाज में अपनी अमिट यादें छोड़ गए। वे लोगो के ह्रदय में हमेशा विद्यमान रहेंगे।
चिठ्ठी न कोई सन्देश
जाने वो कौन सा देश
जहाँ तुम चले गए …

इस दिल पे लगा के ठेस
जाने वो कौन सा देश
जहाँ तुम चले गए…

एक आह भरी होगी
हमने न सुनी होगी
जाते जाते तुमने
आवाज तो दी होगी
हर वक़्त यही है गम
उस वक़्त कहाँ थे हम

मुझे अकेला छोड़ के
कहाँ तुम चले गए…

नतमस्तक- गगन जायसवाल, श्री केशव बिगुलर एवं श्री रामानंद मिश्र

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