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प्रश्न संख्या ८१७- मंत्री महोदय कृपया शांत हो जाये – लोकसभा अध्यक्षा

एक सोच मेरी भी
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कल सुबह मैंने टी वी ऑन किया और मूड कुछ हल्का करने कि नीयत से कुछ कॉमेडी प्रोग्राम देखने की जद्दोजहद में टी वी चैनलों की भीड़ में रिमोट लेकर बड़ी बेचैनी से अपनी पसंद का कार्यक्रम ढूंढ़ ही रहा था कि अचानक देखा कुछ लोग बड़े ही अजीब ढंग से शोरगुल मचाते हुए एक भव्य से गोल परिसर में ऊपर मंच पर बैठी एक महिला को बड़ी ही ऊँची आवाज में जोरदार ढंग से अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहे थे। उनकी भाषा मुझे तो समझ में नहीं आ रही थी, हाँ उनकी आवाज बहुत ही कर्कश लग रही थी। जैसे लग रहा था कि वह सभी लोग अपनी कोई बात उस महिला पर जबरदस्ती थोपना चाह रहे थे और वह महिला उनकी बात को न मानकर उनसे बार-बार कह रही थी कि “प्रश्न संख्या ८१७- मंत्री महोदय कृपया शांत हो जाये”। तब मैंने गौर किया कि यहाँ तो हिंदी में बात हो रही है और ये भाषा तो हमारे लोकतंत्र के मंदिर यानि हमारे संसद भवन की लग रही है.मैंने चश्मे को साफ़ किया और देखा कि मंचासीन महिला तो हमारी माननीया लोकसभा अध्यक्षा श्रीमती मीरा कुमार है। और नीचे उधम मचा रहे सज्जन लोग हमारे वो माननीय नेतागण है जो हमारे रास्ट्र के हर-एक क्षेत्र के अगुआ है,जो आम आदमी की आवाज/जरुरत को संसद में आवाज देने को जनता द्वारा चुने गए है। जो भारतीय संस्कृति के वाहक है, जो विश्व में भारत देश की पहचान है और भी न जाने कितने ही नामो और उपनामों के वाहक है उन्हें जब आज मैंने किताबो और अखबारों से निकलकर इस तरह से साक्षात् देखा तो मेरा मन बहुत ही द्रवित हो गया। मै सोच रहा था कि जब दुनिया हमारे इन नेतागण को देखती होगी तो वो क्या सोचते होंगे हमारे भारत के बारे में। उनके मन में क्या विचार उठते होंगे इस देश कि जनता के लिए. राम,कृष्ण गुरुनानक,रहीम,गौतम बुध,महात्मा गाँधी मदर टरेसा और ऐसे न जाने कितने ही महापुरुषों की गरिमामयी धरती और हमारे गौरवशाली संस्कृति के लिए उनके मन में कितना सम्मान उठता होगा ये विचारणीय है.

मै पूछता हूँ कि आखिर उन्हें क्या हक है हमारी इज्जत को इस तरह से नीलाम करने का। हमें कोई भी बात करनी हो हम उसे शांतिपूर्वक भी तो कह सकते है।ऐसा करने से जनता को भी संसद की कार्यवाही समझ में आने लगेगी। आम आदमी भी देश की समस्याओं को सुनने और समझने लगेगा. शायद कुछ उत्साही नौजवान देश की समस्याओं को सुलझाने के लिए देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाने को आगे भी आयें। मुझे तो समझ में नहीं आते कि आखिर ये नेता लोग संसद की गरिमा को समझना क्यों नहीं चाहते है? आखिर क्या दिखाने के लिए ये लोग इस तरह का असभ्य आचरण करते है।ये अपनी भावभंगिमाओं से क्या जाहिर करना चाहते है।आखिर राजनीति की किस किताब में उन्हें इस बात की शिक्षा मिली है? मै भी पढ़ा-लिखा हूँ लेकिन घर की प्राथमिक पाठशाला से लेकर स्कूल-कॉलेज और सामाजिक व्यवहार में मिली शिक्षा में मैंने इतना ही समझा है कि इस तरह के आचरण को हमेशा निंदनीय ही माना गया है। आज के नेताओ को ये बात क्यों नहीं समझ में आती कि सद्व्यवहार,दया,प्रेम,करुणा,मर्यादा और सदाचरण जैसे गुण ही तो हमारे धर्म और संस्कृति के मूल में है। यदि आप हमारी महान विरासत को संजो नहीं सकते तो आपको इसे धूमिल करने का अधिकार भी नहीं है।भगवान आपको सदबुद्धी दे.

ॐ शांति

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