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एक सोच मेरी भी….

एक सोच मेरी भी
एक सोच मेरी भी
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मै इधर काफी दिनों से लोगों के विचार पढ़ रहा हू, फिर मैंने सोचा कि आखिर लोग लिखते ही क्यों है, काफी सोचने के बाद मै इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि आखिर वह कौन सा रास्ता है जिसके माध्यम से एक आम आदमी भी अपनी बात को पूरी दुनिया तक पहुच सकता है ? जबाब सिर्फ एक ही था और वह है “कलम”, जी हाँ वही कलम जिसके बूते हमने इस्लामिक और अग्रेजो कि सत्ता को जड़ से उखाड़ फेका था l हमारी आजादी का सबसे ईमानदार सिपाही l कलम आम आदमी की त्ताक़त हैlकितनी हैरानी की बात है देश की 125 की करोड़ जनसँख्या किसी भी अखबार में छपे खबर पर विश्वास कर लेते है l लेकिन यह हैरानी नहीं वह विश्वास है जो जनता इसी कलम पर करती है l मै दैनिक जागरण को भी बधाई देना चाहूँगा कि उन्होंने एक ऐसा मंच बनाया है जहा से कोई भी इंसान बिना डरे किसी भी मुद्दे पर अपने बेबाक विचार रख सकता है और पूरी दुनिया तक पंहुचा सकता है
वैसे मुझे आलोचनात्मक लेख सबसे ज्यादा पसंद आते है इसलिए मै यही से शुरुवात करना चाहूँगा
आप सब के आशीर्वाद एवं सहयोग के इन्तजार में …….

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